खाया रसगुल्ला बड़ा , एक जलेबा गर्म (हास्य कुंडलिया)
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/ee6c993e2eb2a0a3c11f40e47160c05b_c503c7e0f9c13bf3ecf41a93bb40a09d_600.jpg)
खाया रसगुल्ला बड़ा , एक जलेबा गर्म (हास्य कुंडलिया)
—————————————————
खाया रसगुल्ला बड़ा , एक जलेबा गर्म
हलवा दो चमचे चखा ,मालपुआ अति नर्म
मालपुआ अति नर्म , दहीभल्ले थे न्यारे
मधुर मूँग की दाल ,गोलगप्पे अति प्यारे
कहते रवि कविराय ,पेट यों भर-भर आया
प्लेट उठाता कौन ,नहीं खाना फिर खाया
————————————————–
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997 615451