खामोश राहें
अतृप्त मन की
मौन इच्छाएं
जान सका न कोई
अंतहीन सफर की
खामोश राहें
पहचान सका न कोई
है हँसती आँखों में
बेपनाह दर्द
मान सका न कोई
नफरतों की बंजर जमीं
प्रेम से उपजाऊ बनानी
ठान सका न कोई
तपते रेगिस्तान सी
बन गयी जिंदगियां
सोच निदान सका न कोई
अल्फाज़ों की पीड़ा
समझे बिना “सुलक्षणा”
बन विद्वान सका न कोई
©® डॉ सुलक्षणा