खामोश दास्ताँ
जुबां खामोश है
खामोश हीं रहेंगी
इन जिगर की दास्ताँ
मेरी भीगी पलकें कहेंगी,
समझ सके तो समझ लेना
हो सके तो कुछ दवा देना।
ना दोगे तो और बात हीं क्या
तेरे मेरे बीच ये
फासला ही रहेंगी।
मेरी तरह आंसू बहाए जो होते
तो दर्दे दिल यूं राजे ना होती
अफ़सोस करके करोगे अब क्या
जो गुजरी है वह तो जमाना कहेगी।