खामोशी
खामोशी
यह एक अभिव्यक्ति ,जो हरदम चुप्पी साधे दिखती
यह अपने में समाये, संवेगों की मौन व्यथाये है ।।
दुनिया सुनती शब्दो को
खामोशी की व्यथा नही, अंतर्द्धद्ध में जलता हैं मन
शब्दो मे ये बंधा नहीं।।
ख़ामोशी का यह ज्वार,विरह-वेदना को भी, निर्झर बहा देता
काँटो से घिरकर भी गुलाब, मौन बना सब सह जाता ।।
खामोशी मन के तहखाने से,सपनों में जिंदा लाशें है।
कुछ अपनो का ठुकराना,जीवन की घुटती सांसे है ।
जमाना क्या जाने,इन एहसासों की गहराई
जो खामोशी बन बैठीं अब,मन की सच्ची प्रहरी ।।