खामोशी
शोर के समन्दर में
उठती गिरती लहरों
के राज़
खामोश आँखें
खोलती हैं
ख़ामोशी बोलती है
सुने, अनसुने
हर एक शब्द के
वजन को तोलती है
और
चुपके से छुपके
बेआवाज़
बड़ी नफासत से
कानों में
सारे शब्द
साफ साफ घोलती है
मेरी मानो
खामोशी बोलती है
हाँ
ख़ामोशी बोलती है।
अपर्णा थपलियाल”रानू “