खामोशी ने मार दिया।
भीड़ में तन्हा लगता था, अब अकेलेपन ने मार दिया।
रिश्तों में उलझन थी, अब सुलझन ने भी मार दिया।।
साथ मे रहना खलता था अब तन्हाई ने तो मार दिया।
बोलना तेरा चुभता था अब खामोशी ने तो मार दिया।
दुष्शासन ने लाज उतारी, तब हस्तिनापुर ने मार दिया।
दाव चौसर का लगा मुझे, तभी युधिष्ठिर ने मार दिया।।
चीखती रही नारी को हमारी न्याय व्यवस्था ने मार दिया।।
बीच चोराये लुटती नारी, अपनी खामोशी ने तो मार दिया।
शब्द मेरे जो चुभते तुमको इनके अर्थो ने तो मार दिया।
बोलना मेरा चुभता तुमको तेरी खामोशी ने तो मार दिया।
लीलाधर चौबिसा (अनिल)
चित्तौड़गढ़ 9829246588