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1 Mar 2022 · 1 min read

खामोशी का तोहफ़ा।

हम अपने सारे बंधन तोड़ आये है।
इक तेरी खातिर हम सबको छोड़ आये है।।

जिदंगी में उजले तो कुछ काले भी साए है।
हमने यूं तो जमाने से बहुत धोखे खाए है।।

जो है दिल के बड़े करीब जां मांगने आए है।
यह देखकर दिल गम में तो लब मुस्कुराए है।।

सोचा था मरकर सुकूं मिलेगा मेरे दिल को।
पर यहां भी हर पल जख्म देने वाले पाए है।।

हमे क्या पता था छोटे नुक्सों का हिसाब होगा।
महसर में हम यह देखकर जीने पर पछताए है।।

उनको हमेशा ही हमसे दिक्कत रहती थी।
देकर उन्हे खामोशी का तोहफा सूकू पाए है।।

ताज मोहम्मद
लखनऊ

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