खाना बदोश
ये धरती आकाश बना है
मेरा अपना रेन बसेरा
नहीं किसी से लेना देना
फिर क्या तेरा , फिर क्या मेरा
न तो हूँ में जोगी रमता
और नहीं में बहता पानी
इस धरती पर रही सदासे
मेरी अपनी राम कहानी
मैंने अपने नंगे पग से
सौ सौ बार धरा को घेरा
फिर क्या तेरा , फिर क्या मेरा
आँधी तूफानों में मेरी
संतानों ने झूला झूले
जलती दोपहरी में इनके
जीवन कुसुम सदा से फूले
चलते चलते जहाँ हो गयी
सांझ वहीं पर डाला डेरा
फिर क्या तेरा, फिर क्या मेरा
कल की चिंता कभी न करते
आज मिला जो कुछ खाया है
मेहनत के बल पर शदियों से
तो सब कुछ मिलता आया है
जिस जगह पर सांझ हुई है
वहाँ न होता कभी सबेरा
फिर क्या तेरा , फिर क्या मेरा