खानाबदोशी का रंग
दिन रात है भागदौड़
व्यर्थ में मची है होड़
यथार्थ और भ्रम का
यह कैसा निरर्थक नृत्य
न खुशी है, न उमंग।
न हैं पवित्र मान्यताएँ
न निश्छल भावनाएँ
न सुख है, न संवेदना
क्षणभंगुर सपनों में
बदल गया जीने का ढंग।
अंतहीन हैं अभिलाषाएँ
बेमानी हैं प्रतिस्पर्धाएँ
दम घुटाती हैं हवाएँ
दिशा-दिशा में चढ़ गया
खानाबदोशी का रंग।
© हिमकर श्याम