खांचे
भीड़ ने भिखारी को घेर लिया। उनके हाथों में डण्डे और तलवारें थीं। यह सब डराने के लिए था और शायद वह भिखारी को यहाँ से भागने के लिए एक मौक़ा देना चाहते थे। वरना उस बेचारे की क्या औकात जो इन धर्म के ठेकेदारों के सामने ठहर सके।
“शर्म नहीं आती, कभी हरा, कभी भगवा पहनकर भीख मांगते हो?” भिखारी की गिरेबान पकड़े शख़्स ने कहा, “कभी अल्लाह के नाम पर, कभी भगवान के नाम पर।”
“क्या बात हो गयी?” भिखारी ने उससे पूछा।
“तुझको कल मैंने हरे रंग का लिबास पहने मस्जिद के सामने भीख मांगते देखा था। आज यह भगवा पहने तू बड़ी निर्लज्जता के साथ मन्दिर के सामने भीख माँग रहा है।” उस व्यक्ति ने अत्यन्त आक्रोशित होते हुए ऊँचे सुर में कहा।
“घोर कलयुग! धर्म दिनों-दिन रसातल में जा रहा है।” पण्डित जी ने अपनी वेदना व्यक्त की।
“इसलाम को मज़ाक़ बना दिया इस फ़क़ीर ने!” पंडित जी के समीप ही खड़े मौलाना भी बोल उठे, “लाहौल बिला कुव्वत…. रोज़-ए-क़यामत सूअर का मुँह होगा इस बदजात का!”
“हरा हो या भगवा, हमारे लिए हर रंग का सम्मान है।” अब तक विधायक जी भी वहाँ पहुँच चुके थे। उन्होंने प्रत्यक्षदर्शियों घटना का पूरा संज्ञान लिया।
“मारो, पीटो, काटो, साले को।” तभी भीड़ से कुछ आवाज़ें आने लगीं।
“शान्त भाइयों शान्त, हम गाँधी जी के रास्ते पर चलने वाले अहिंसा के पुजारी हैं! इलाके का विधायक होने के नाते मैं चाहूँगा इस मामले का शान्तिपूर्वक निपटारा हो।” विधायक जी के कहने पर भीड़ कुछ शांत हुई, ततपश्चात उन्होंने भिखारी से पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?”
“फ़क़ीर सिंह!” भिखारी बोला, “मेरी माँ हिन्दू थी और बाप मुसलमान! मेरा बचपन मस्जिद और मन्दिर दोनों जगह बीता क्योंकि मेरी माँ मन्दिर के प्रांगण में भीख मांगती थी तो मेरा बाप मस्जिद के फुटपाथ पर भीख माँगता था। मैं कभी माँ के साथ होता था तो कभी बाप के साथ। मैं मन्दिर-मस्जिद में ही पल कर बड़ा हुआ। मुझे तो दोनों जगहों पर कहीं कोई फ़र्क़ नज़र नहीं आया।”
“तुम्हें दोनों धर्मों में कोई फ़र्क़ नज़र नहीं आया?” भिखारी की बात पर हैरान होते हुए पंडित जी बोले, “फिर तो ये बहुत ख़तरनाक़ आदमी है मौलाना साहब।” पंडित जी ने मौलाना जी की ओर देखकर आशंका व्यक्त की।
“हाँ, बिलकुल ये तो कभी दंगा-फसाद करवा देगा।” मौलाना जी ने भी पण्डित जी की हाँ में हाँ मिलाई।
“मैं दोनों धर्मों का सम्मान करता हूँ।” भिखारी ने मौलाना और पंडित जी की आँखों में आँखें डालते हुए कहा। धर्म मेरे लिए आस्था, श्रद्धा और विश्वास का ही प्रतीक नहीं बल्कि रोज़ी-रोटी का भी ज़रिया है। प्रसाद और भीख से मेरे परिवार का पेट भरता है।”
“बकवास बंद कर! तू पाखण्डी है। दोनों धर्मों के लोगों की जासूसी करता है और दंगा-फ़साद होने की स्थिति में लाभ उठता है।” विधायक जी भिखारी पर भड़कते हुए बोले, “आज के बाद या तो मन्दिर में भीख मांग या मस्जिद में, क्यों ठीक है पंडित जी और मौलाना साहब?”
“बिलकुल सौ फ़ीसदी जनाब।” मौलाना जी बोले।
“शत-प्रतिशत सत्य वचन यजमान!” पंडित जी ने भी विधायक जी की बात से सहमति दर्शायी।
“गुस्ताख़ी माफ़ हो तो कुछ अर्ज़ करूँ! ये नफ़रत और घृणा का माहौल तभी तक है। जब तक हम एक-दूसरे से अनजान हैं। दूर-दूर रहते हैं। जब हम एक-दूसरे के निकट आते हैं और एक-दूसरे की भावनाओं को समझते हैं तो परिपक्व समाजिक सोच विकसित होती है। फिर दंगा-फ़साद नहीं अम्न और भाईचारा बढ़ता है। अपनी आस्था को हरे रंग या भगवा में मत बांटों, ये सब कुदरत के रंग हैं, इन्हें धर्म-मजहब के खांचों में क़ैद मत करो। ” भिखारी के मुख से यह लाख टके की बात सुनकर सभी लोग निरुत्तर हो गए। उनकी लाठी, तलवारें नीचे झुक गईं।
अतः वह भिखारी अब उसी भीड़ के मध्य से होता हुआ किसी अन्य स्थान की खोज में चल पड़ा। जहाँ वह निश्चिन्त होकर अपना जीवन यापन कर सके।
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