ख़्वाब
छंद मुक्त रचना
#ख़्वाब
जिस्म के लिए मकां
रूह के लिए इंसा
दिल के लिए धड़कने और जिंदगी के लिए सांसें
पता है
कितनी जरूरी है
चांद के लिए आसमां
एक शिशु के लिए मां
गुल के लिए गुलिस्तां
रहबर के लिए इल्मे जहां
पता है
कितनी जरूरी है
मौत के लिए सांसों की कमी
आंखों के लिए थोड़ी सी नमी
पता है कितनी जरूरी है ?
उतनी ही जरूरी है मेरे लिए मयस्सर होना
दिल में छपी तेरी तस्वीर
वो आहिस्ते से करीब आने का एहसास
मेरी मस्वविर बनने की सोच
परिंदों के लिए उन्वान ए घोसला
और मेरी आसमां छूने की हौसला
राह ए सुखन पर तुम्हारा नजाकत बन पेश आना
ना जाने इन एहसासों को क्या कहते हैं
मोहब्बत या इबादत की तरह पेश आना।
थोड़ी सी फासले हैं तो
हम भूगोल की बात माने क्यों
विज्ञान भी तो गलत साबित हुआ
जब यह कहा कि चांद बहुत दूर है हमसे
राह ए मोहब्बत में
हमने चांद को पहलू में बैठे देखा
और उसमें भी
थोड़ी सी शर्माहट थोड़ी सी नजाकत
आंखें बंद थी मेरी
जब मैंने पूछा
क्या आपने रुख से हिजाब निकाल दिया ?
तो वो चांद अपने बालों से
मेरा चेहरा ढककर
अपनी बाहें मेरे गले में डाल दिया।
पता है आज वो चांद अाई थी मेरे सपने में
तुम्हें शुबहा तो नहीं
कि वो चांद तुम थी।।।
©® दीपक झा रुद्रा