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20 Aug 2022 · 1 min read

ख़्वाब पर लिखे अशआर

ख़्वाब में हमसे मिल कभी आके ।
मेरी आंखों को नींद आती है ।।

ख़्वाब में जागती रही आंखें ।
हम तरसते रहे हैं नींदों को ॥

तरसी हुई नज़र को उम्मीद-ए-दीद है।
आ ख़्वाब बन के आजा आंखों में नींद है ।

मुस्कुराट लबों की क्या कहिए ।
मेरी आंखों में ख़्वाब तेरे हैं ।।

नफ़रतों को कुछ ऐसा मोड़ दिया ।
सिलसिला ख़्वाब का भी तोड़ दिया ।।

नींद का कुछ कुसूर थोड़ी था ।
भीगी आंखों के ख़्वाब भीगे थे ।।

टूटी नींदों के ‘शाद’ हिस्से में ।
ख़्वाब कोई कहां मुकम्मल था ।।

हमको इस ज़िन्दगी के हासिल जवाब थे ।
कहीं नींद थी अधूरी कहीं टूटे ख़्वाब थे ।।

डॉ फौज़िया नसीम शाद

Language: Hindi
Tag: शेर
6 Likes · 461 Views
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