ख़्वाब भी चुभते है आंखों में।
अब ये ख़्वाब भी चुभते है आंखों में।
आ ना जाए नींदों में रातभर जागते है।।1।।
चलते चलते ही बीती है ज़िंदगी मेरी।
बे-पता मन्जिल के पीछे हम भागते है।।2।।
बड़ी जी ली बद नसीबी की जिन्दगी।
दुआओं में अपनी अब असर चाहते है।।3।।
मदहोश शबनम आयी है मेरे आंगन।
अपनी चांदनी का हम कमर चाहते है।।4।।
राजे दिल हम यहां किस को बताए।
अपने ही पीठ के पीछे खंजर मारते है।।5।।
रास्ते भी है टेढ़े मेढे कैसे हम संभले।
सहारे की खातिर इक रहबर चाहते है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ