ख़्वाबों की दुनियाॅं का सच !
ख़्वाबों की दुनियाॅं का सच !
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बैठा था इक दिन शांत में….
खोया हुआ था अरमान में….
इसमें इतना डूब चुका था….
जो ले गया मुझे आसमान में !!
ख्वाबों की दुनिया बिल्कुल स्वप्निल थी !
चाॅंद सितारों की बारात सजी हुई थी !
छटा वहाॅं की बिल्कुल ही निराली थी !
पवन जहाॅं पे मद्धम गति से इतराई थी !!
मंज़िल मुझे स्पष्ट दिख रही थी !
वर्षों की ख्वाहिशें पूरी हो रही थी !
मंज़िल के इतने करीब आकर भी….
इक सिहरन सी महसूस हो रही थी !!
सिहरन थी अचानक मंज़िल पा जाने की !
चकाचौंध की दुनिया में गुम हो जाने की !
सबकी ऊॅंची ऊॅंची मंज़िलों को देखकर….
अपनी छोटी सी मंज़िल में ही छुप जाने की !!
एकाएक जब किसी के सपने पूरे होता !
वहाॅं खुद पे तो जल्द यकीं ही ना होता !
पर कोई फल मेहनत से जब है मिलता !
तो आत्मविश्वास वहाॅं बिल्कुल ही बढ़ जाता !
और अंतर्मन जिसे अपना सहर्ष स्वीकार करता !!
तो ऐ दिन में ख़्वाब देखने वाले सुन लें….
ख़्वाब तो देखें पर मेहनत का ही रास्ता चुन लें !
जब किसी चकाचौंध भरी दुनिया में हम जाते हैं ,
तो वहाॅं का वातावरण हमें तब स्वीकार करता है ,
जब वहाॅं की आवोहवा के साॅंचे में हम ढल जाते हैं !!
_ स्वरचित एवं मौलिक ।
© अजित कुमार कर्ण ।
__ किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : १४/०६/२०२१.
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