ख़ौफ़ के मंज़र यादों से मिटाओ फिर से
ख़ौफ़ के मंज़र यादों से मिटाओ फिर से
सब मिलजुल कर मीठे नगमें गाओ फिर से
बेरंग से मौसम हरसू हैं फ़िज़ाओं में
चलो त्योहार होली के मनाओ फिर से
रोना मुस्कुराना गिरना -औ- संभलना
तुम भी बच्चे क्यूँ ना बन जाओ फिर से
हाय आते-आते लब तक कहाँ खो गई
चलो हँसी को रास्ता बताओ फिर से
सुलह्नामे के आते हैं आसार नज़र
आओ उठी दीवार को गिराओ फिर से
क्यूँ ना इक शायर की नज़र से देखकर
उदास चेहरा फूल- सा खिलाओ फिर से
दिल लेता है झूम कर अंगड़ाई अब तो
‘सरु’ आँगन में शहनाई बजाओ फिर से