ख़ूबसूरती और सादगी के बीच का यह अंतर गहराई और दृष्टि में छिप
ख़ूबसूरती और सादगी के बीच का यह अंतर गहराई और दृष्टि में छिपा है।
ख़ूबसूरती वह है जो बाहरी रूप से चमकती है। यह अपनी आभा से हर किसी का ध्यान आकर्षित करती है। यह रंग, रूप, वस्त्र, और भौतिक आकर्षण का मेल है। ख़ूबसूरती को हर कोई देखता है, सराहता है, और इसके पीछे खिंचता है। यह पहली नज़र में दिखाई देती है और अक्सर लोगों के दिलों में अपनी छाप छोड़ देती है।
सादगी, इसके उलट, भीतरी सौंदर्य है। यह आडंबर और दिखावे से परे है। सादगी में स्वाभाविकता, सहजता और एक विशेष प्रकार की विनम्रता होती है। यह उन लोगों को ही नजर आती है जो दिल से देखने की कला जानते हैं। सादगी में जो शीतलता और शांति है, वह गहरी समझ रखने वालों को आकर्षित करती है। यह ख़ूबसूरती से अधिक स्थायी और गूढ़ होती है।
ग़ज़ल की दृष्टि से:
“ख़ूबसूरती चमके आईनों में,
सादगी बसती है आँखों में।
जो देख सके इस सादगी को,
वो खास है जमाने के लाखों में।”
ख़ूबसूरती सबके लिए होती है, लेकिन सादगी केवल उन्हें दिखती है, जिनकी दृष्टि गहरी होती है।