ख़ूबसूरती-मेरी नज़र से।
हर ख़्याल है रौशन तसव्वुर से तुम्हारे,
कि मेरे अल्फाज़ का आफताब हो तुम,
किन लफ्ज़ो में तारीफ़-ए-जमाल कहूं,
कि ज़मीं पे उतरा महताब हो तुम,
जो लिखना भी चाहूँ तो क्या लिखूं,
कि हर ख़्याल से परे एक ख़्वाब हो तुम,
ख़ूबसूरती भी खिले ख़ूबसूरती से जिसकी,
ख़ूबसूरती का खिलता वो गुलाब हो तुम,
देखो जो ख़ुद को मेरी नज़र से
तो अपनेआप में लाजवाब हो तुम,
क्या कहूं की हर लफ्ज़ कम है मेरा,
कि ख़ूबसूरती का नायाब ख़िताब हो तुम।
कवि- अम्बर श्रीवास्तव।