ख़ुद को समझाना पड़ता है
ख़ुद से ही लड़ना पड़ता है
ख़ुद को समझाना पड़ता है,
शामों का बोझल हो जाना
नींदों का रातों में न आना
अक्सर राहों में खो जाना
कोने में जा चुपके रो आना
अब कौन यहां जो समझाए
ख़ुद को समझाना पड़ता है,
सिर का भारी वो हो जाना
माथे की नस का दुख जाना
भूखों का जल्दी न आना
कभी शांत अकेले हो जाना
जब दर्द से सीना दुख जाए
ख़ुद को समझाना पड़ता है,
सब स्थितियां ख़ुद ही लाना
ख़ुद का कमरे से बँध जाना
जब सांझ ढले घर को आना
पूछे जाने पर न बतला पाना
जब व्यर्थ परेशां मन हो जाए
ख़ुद को समझाना पड़ता है,
ख़ुद से ही लड़ना पड़ता है
ख़ुद को समझाना पड़ता है,
……………..
निर्मल सिंह ‘नीर’
दिनांक – 18 जुलाई, 2017
समय – 05:40pm