उम्मीद
ख़ुद के दिल का ही कोई भरोसा नहीं,
दोष औरों को देने का क्या फ़ायदा..!
ज़ख़्म के फूल खिलते हैं खिल जाएंगे,
यूं ही रोने-सिसकने का क्या फ़ायदा…!
पास किसके कहां है ग़मों की कमी
हर किसी आंख से है झांकती नमी
दर्द कितने ही सीनों में सबके दफ़न
दर्द उनको दिखाने का क्या फ़ायदा…!
वक्त का ये परिंदा उड़ा जायेगा
ये रुकेगा नहीं, न तूं रोक पायेगा
है जुदाई–मिलन से भी पहले से तय तो
कोई उम्मीद लगाने का क्या फ़ायदा…!
©अभिषेक पाण्डेय ‘अभि’
२१/०२/२०२३