ख़ुद की खोज
खुद की खोज में दूर निकल आए।
डराते हैं यहां हमें , हमारे ही साए।
महसूस किया ,कितने अकेले हैं हम
तन्हाई से दिल मेरा है घबराए।
कैसे ढूंढे हम खुद को, कोई समझाए
क्यों अंदर इतना वीरान, कौन बतलाए
थक गये टटोल कर , अपना अंतर्मन
बस अपने गुनाहों पर हम पछताए।
तेरी मेहर हो जाए ,मुझ पर ए खुदा
मैं क्या हूं,क्यों हूं,पल में तू समझाए।
सुरिंदर कौर