ख़लिश
खलिश
दिल में कोई तो ख़लिश रही होगी,
ग़ज़ल उसने जब दर्द पे कही होगी ।।
यूँ ही नहीं रूठा माँ का आँचल,
फ़र्ज में कुछ तो कमी रही होगी ।।
बेवफा, रूह ने जब पुकारा होगा,
जख़्म खामोशी से सब सही होगी ।।
धुँधला गयी हैं जो निगाहें आज,
ताउम्र बारिश में वो बही होगी ।।
तन्हाइयाँ दामन में जो सजाया तो,
वस्ल़ पर उसकी कहाँ चली होगी।।
इश्क़ ज महबूब की आजमाइश में,
रात किश्तों में जल रही होगी ।।
किरण सौदा किया जब काँटो से,
फिर दर्द से ही तो बतकही होगी।।
किरण मिश्रा “स्वयंसिद्धा”
नोयडा
5़/9/2021