ख़फा ख़फा।
रद़ीफ- ख़फा ख़फा।
हवाएं भी ख़फा ख़फा
फिजाएं भीख़फा ख़फा।
नज़रें मिलें भी तो कैसे मिलें,
हैं निगाहें भी ख़फा ख़फा।
ये मौसम भी ख़फा ख़फा
और घटाएं भी ख़फा ख़फा।
ज़माने से भला कैसे लड़ें,
जब प्रीत ही है ख़फा ख़फा।
हुई धरा भी ख़फा ख़फा
और अंबर भी ख़फा ख़फा।
हाय, बातें दिल की कहें किसे,
जब जान और जिगर हों ख़फा ख़फा।
है आशा भी ख़फा ख़फा
और निराशा भी ख़फा ख़फा।
किस बोली में इज़हार करूं,
हैं भाषा भी ख़फा ख़फा।
गलियां भी ख़फा ख़फा और
चौराहे भी ख़फा ख़फा।
मिलें तो किस डगर उनसे,
हैं राहें भी ख़फा ख़फा।
वो आए भी ख़फा ख़फा
वो गये भी ख़फा ख़फा।
महफ़िल में थे, मेरी जब तक,
वो रहे भी ख़फा ख़फा।
नीलम शर्मा