ख़त
ज़माना बीत गया
ख़त लिखे हुए
वो डाकिये की आहट
क्या ज़माना था
जब सारा हाल चाल
ख़तों के ज़रिए लिख के
पहुँचाया जाता था
एक इंतिज़ार,एक ख़ुमारी
का आलम रहता था
जीने की आस बन कर
मोबाइल ने ये काम आसां
तो कर दिया है
पर वो ललक, वो लिखावटें
वो संवेदनाएँ कहीं खो गई हैं
वो रचनात्मकता नहीं रही
लेखन कहीं अधूरा सा रह गया है…
©️कंचन”अद्वैता”