ख़त लिखे थे जो मुहब्बत में कभी उसने
ग़ज़ल
याद तेरी जो बसी दिल में भुलाता कैसे।
पास दौलत है यही इसको लुटाता कैसे।।
जीत तो जाता मगर फिर भी ख़ुदी हारा हूँ।
जीत जाने की खुशी तुझसे चुराता कैसे।।
घर जलाता जो नहीं तू ही बता क्या करता।
सर्द रातों को अकेले में बिताता कैसे।।
हम चुगाते थे कभी जिनको बुलाकर दाना ।
आज भी आते परिंदे हैं उड़ाता कैसे।।
जानता हूँ कि मकां मेरा उसी सफ़ में है।
आग फिर घर में पड़ौसी के लगाता कैसे।।
ख़त लिखे थे जो कभी उसने मुहब्बत में “अनीस”।
प्यार का दरिया बहे उनमें जलाता कैसे।।
_अनीस शाह “अनीस”