ख़त आया है ………
खत लिख कर तुमने तो इल्ज़ाम लगा दिया
एक ही पल में बेपरवाह का पैग़ाम भेज दिया
ज़िक्र उस धरती का क्या करूँ जिसको मैंने तराशा था
बड़े सपनों के साथ इसको सुंदर सा सजाया था
प्रकृति और पर्यावरण का अद्भुत मेल कराया था
प्रेम भाव से रह कर जीने का बीज उगाया था
इंसानों को समन्वय के साथ रहने का पाठ भी पढाया था …
पर न जाने उसको बनाते बनाते क्या सुझी मुझको
दिल की धड़कन के साथ सोचने वाला दिमाग़ भी डाल दिया
उसी दिमाग़ ने जब राग और द्वेष का माया जाल बुन लिया
कभी न ख़त्म होने वाला लाभ और हानि का चक्कर चला दिया …
भूल गया वो इंसान सद्भावना और संवेदना का पाठ
कुचल दिया उसने मेरे बनाए संसार का ठाठ!
तो अब क्यूँ करते हो मुझसे वफ़ा की आशा
छलनी कर दिया जब तुमने धरा को बेतहाशा !!
थोड़ा सहना पड़ा है अब उसके एवज़ में
खोना पड़ा है अपनों का साथ बेवक्त में
हाहाकार तुमने बड़ा मचाया था तब
प्रकृति ने उसी गूँज को दोहराया है अब …
लेकिन हाँ मैंने देख लिया है
इंसान थोड़ा संभल गया है
अपने किए पापों को भोग रहा है
तुम भी अब घबराओ मत
बहुत जल्द ही में आऊँगा
और अपनी बेवफ़ाई का
सबूत भी दे पाऊँगा !!!