खस्सीक दाम दस लाख
‘कविता’
“खस्सीक दाम दश लाख”
* * *
दश लाख पकरिते
बुढ़िया असोरा पर बैस गेलिह,
थकाएल पेराएल।
हुँनक खस्सीक दाम छै दश लाख॥
पान छौ महिना पहिने
रमचँनरा कहलकै किदन…
गै काकी, खस्सी चरेब्ही कतऽ??
आब त मालिक खेत मे देवाल लगा रहल छौ..
बुढ़िया थकमकाह गेलिह..
हमर खस्सी कोना चरत?
रमचँनरा कहलकै ‘गै, लानऽ खस्सी’..
सार मलिकवा के वालिये चरा देवै..
बुढ़ियो तामस मे आबि गेलिह्
हँ रौ! लऽ जोऽ…
सरऽधुवा बड़ चाँई छौ..
तहिए सँ रमचँनरा निपत्ता।
बुढ़िया खोजबो केलकै
ने खस्सी भेटल
ने रमचँनरा…
आई रमचँनरा लकऽ आएल छै दश लाख।
हुनक खस्सीक दाम दश लाख॥
खस्सीक बलि चढऽबिते रमचँनरा आ मालिक मे मेल भऽ गेलैक किदंन..
इ मेल सँ खुस भऽ मालिक दश लाख देने छै..
हुनक खस्सीक दाम दश लाख।
एम्हर नोराएल आँख सँ बुढिया
खुर्पी जाला दिसन ताकि रहल छैन्ह..
जेकरा चल्ते रने बने बौवेलहुँ
ओकरे दाम दश लाख॥
खस्सी जे बुढ़ियाक पँजरा मे बैसैत छल
जे चेथरे पर मुतैत छल
ओकरे दाम दश लाख।
जे मेमियहट्ट बुढ़िया के जगबैत छल
ओकर दाम दश लाख॥
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-रंजित झा
बलरा, सर्लाही