//खलती तेरी जुदाई//
महफिल से अच्छी लगती हैं,
बिन तेरे तन्हाई।
सब हों पर जो तुम न हो तो,
खलती तेरी जुदाई॥
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१- तुम हो दिल, मैं धड़कन तेरी,
जन्म-जन्म का नाता अपना।
पलकों पर जो रहता हरदम,
तुम हो वह जागते का सपना॥
जीवन के पथ पर हर पल तुम,
आशा बनकर आई।
सब हों पर जो तुम न हो तो,
खलती तेरी जुदाई॥१॥
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२- अधरों की अरुणिमा तुम्हारी
शीतलता पहुंचाती।
नयन, कपोल, झूमती अलकें,
जीवन रस बरसातीं॥
ग्रीवा, कटि, वक्षस्थल में,
सुरपुर की शोभा छाई।
सब हों पर जो तुम न हो तो,
खलती तेरी जुदाई॥२॥
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३- मेरी खातिर ही धरती पर,
तुमको विधि ने पहुंचाया।
मिले न गर स्थूल जगत में,
अंतर्मन से मिलाया॥
जिसको पाकर भी न पाया,’
अंकुर’ वह ह्रदय समाई।
सब हों पर जो तुम न हो तो,
खलती तेरी जुदाई॥३॥
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-✍️ निरंजन कुमार तिलक ‘अंकुर’
जैतपुर, छतरपुर मध्यप्रदेश