खरपतवार
खरपतवार
‘मम्मी, देखो तो वह लड़की उस छोटे से रिंग में कैसे पूरी निकल गई’ लाल बत्ती पर रुकी कार में बैठी वृतिका अचानक चिल्लाई। उसके चिल्लाने से मोबाइल पर व्यस्त मम्मी का ध्यान टूटा और वह बोलीं ‘कहां … ओ अच्छा … अरे बेटी, यह तो इनका रोज़ का, पूरे दिन का काम है।’
‘मम्मी, मम्मी … देखो, वह कैसे उल्टा होकर चल रही है’ वृतिका फिर बोली। ‘हां बेटी, ये जितने भी बच्चे हैं बहुत से करतब करते हैं’ मम्मी ने कहा। बत्ती हरी हो गई थी। बत्ती हरी हो गई थी और गाड़ी चल पड़ी थी। करतब दिखाने वाले उस तरफ चले गये थे जहां ट्रैफिक लाल बत्ती होने के कारण रुक गया था। यानि कोई भी विराम नहीं क्योंकि यही उनकी रोज़ी-रोटी होती है और उसमें आराम-विराम की कोई गुंजाइश नहीं होती।
‘मम्मी, ये सब कहां से सीखते हैं’ वृतिका ने पूछा। ‘बेटी, यूं ही सड़क पर, देखते देखते अपने आप सीख जाते हैं, इन्हें कोई सिखाने वाला नहीं होता’ मम्मी ने जवाब दिया। ‘पर हमें स्कूल में हमारे टीचर कई खेल सिखाते हैं पर ऐसे खेल तो वह भी नहीं सिखाते’ वृतिका ने कहा।
‘बेटी, तुम क्यों ज्यादा सोच रही हो, इस तरह के खेल वही सीखते हैं जो बड़े-बड़े मुकाबलों में खेलने जाते हैं’ मां ने समझाने की कोशिश की। ‘तो क्या ये बच्चे बड़े मुकाबलों में खेलने जायेंगे, ये तो बहुत अच्छा खेल रहे थे’ वृतिका ने कहा। ‘नहीं बेटी’ मां ने संक्षिप्त जवाब दिया। ‘पर मां, हमारे टीचर बताते हैं कि अगर कोई बड़े मुकाबलों में जीतता है तो उसे मैडल मिलते हैं। और उन्होंने बताया कि ओलिम्पिक खेलों में हमारा देश कुछेक मैडल ही जीत पाता है। अगर ये बच्चे बड़े होकर ओलिम्पिक्स में खेलेंगे तो ज़रूर मैडल मिलेगा, इन्हें हराना मुश्किल होगा’ वृतिका ने कहा।
‘नहीं बेटी, इन बच्चों की किस्मत में ये सब कहां। ये तो उस खरपतवार की भांति है जो उगती है, हरी दिखती है पर किसी काम नहीं आती …’ मां दुःखी होकर बोली। ‘खरपतवार …. वो तो … हमारी साइंस की टीचर ने बताया था ….’ कहती हुई वृतिका गुमसुम सी हो गई थी।