खबर कर रहें हैं
तेरे ख्वाब मुझमें बसर कर रहें हैं
धीरे -धीरे मुझमें ये घर कर रहें हैं
तुम खो गए हो, न तुमको पता है
तुम्हे हम तुम्हारी खबर कर रहें हैं
तुम तो हसीन सा एक वाकया हो
न पूछो मेरे लिए के तुम क्या हो
हो समाए मेरी रग- रग में जानां
शब्दों से तुम्हारी नजर कर रहें हैं
तुम खो गए हो, न तुमको पता है
तुम्हे हम तुम्हारी खबर कर रहें हैं
हमें चाहतों की जो जायदाद दी है
शायद ये मर्जी भी कायनात की है
तुम्हारे बिना सब कुछ है लगता पराया
तुम्हे क्या पता कैसे गुजर कर रहें हैं
तुम खो गए हो, न तुमको पता है
तुम्हे हम तुम्हारी खबर कर रहें हैं
क्या तुमसे तुम्हारी लड़ाई हुई है?
तुम्हारी याद तुमसे क्यूँ पराई हुई है
चले जाओगे तो मैं तन्हा रहूँगा
ये जताना नहीं था मगर कर रहें हैं
तुम खो गए हो, न तुमको पता है
तुम्हे हम तुम्हारी खबर कर रहें हैं
-सिद्धार्थ गोरखपुरी