खनकती चूड़ियाँ- हिन्दी कविता
खनकती चूड़ियाँ
हिन्दी कविता- कोमल अग्रवाल
खनकती चूड़ियाँ तुझको मेरे दिलबर बुलाती हैं
झूलों के महीने में तुम्हारी याद आती है।
तुम्हारी याद का मोती मेरी पलकों में ठहड़ा है
अगर गिर जाए तो फिर ये समंदर से भी गहरा है।
सभी जब छेद देते हैं जिक्र तेरा बहाने से
बहलता जी नहीं मेरा किसी भी फिर ठिकाने से
सखियाँ भी मेरी तुझको ही अब संगदिल बताती हैं।
झूलों के महीने में तुम्हारी याद आती है।
उलझती जुल्फ की उलझन उदासी से भरी धड़कन
उस पर ये घाटा बैरन अकेला भीगता टन मन
कोई इल्जाम तुझ पर हो ये चाहत सह न पाती है
प्रतिकछा की सभी घड़ियाँ तुम्हें दोषी बनाती हैं ।
खनकती चूड़ियाँ तुझको मेरे साजन बुलाती हैं ।
मेरे भीतर समाया है तुम्हारा छेदना साजन
हमारी छोटी सी अन बन मेरी पायल की छन छन छन।
तुम्हारा अक्स दिखता है की देखूँ जब भी मैं दर्पण ।
उतर आया है आँखों मे बरसता झूमता सावन
तुम्हें आना पड़ेगा अब की मेरी जान जाती है
गली के उस मुहाने तक निगाहें दौड़ जाती हैं।
खनकती चूड़ियाँ तुझको मेरे साजन बुलाती हैं
झूलों के महीने मे तुम्हारी याद आती है ।