खत में छिपा गुलाब
खत में छिपा कर रखा गुलाब है
शब्द जिस का लिखा लाजबाब है
महक मुलाकात की जिसमे बसी
सूँघन श्वांस संस्पर्श तेरी ही रमी
चरम पर रहा प्यार जैसे हम नबाब है
बयान करती हर पँखुरी हर रात को
कैसी अपनी प्रीत रही उस साथ को
लिख रही इसमें जो न कोई ख्याव है
लेखनी पन्ने पर उड़ेल रही मुहब्बत
दृष्टिगत हो रही जिसमें हर हरकत
हर पाती दिखा रही है अपना शबाव
चुन चुन कर लिख रही हूँ मैं निवेदन
मौन भरा छिपा है जिसमें आवेदन
मिले आपको जब चले आना जनाब