खत पढ़कर तू अपने वतन का
खत पढ़कर तू अपने वतन का।
जल्दी आना अपने वतन को।।
करती है याद मातृभूमि तेरी।
मिलने आना अपने वतन को।।
खत पढ़कर तू ——————-।।
खेला करता था कभी, तू इसकी गोद में।
सँग कभी हँसता था इसके, तू इसकी मौज में।।
इसके फूलों की खुशबू , तुमको बुलाती है।
इसलिए चले आना, तू अपने चमन को।।
खत पढ़कर तू ———————–।।
इसके जैसा नहीं मिलेगा, तुमको प्यार कहीं।
इसके जैसा नहीं मिलेगा, तुमको सम्मान कहीं।।
इसके अहसान सच में, तुम पर बहुत है।
तू चले आना चुकाने, इसके अहसान को।
खत पढ़कर तू ————————–।।
देख कैसे लुट रहा है, यह तेरा वतन यहाँ।
देख कितना रो रहा है, यह तेरा चमन यहाँ।।
बर्बाद नहीं होने दे तू , अपने चमन- देश को।
तू चले आना बचाने, देश के सम्मान को।।
खत पढ़कर तू ————————-।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)