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18 Feb 2021 · 1 min read

खत जो लिखे ही नहीं

खत जो लिखे ही नहीं

जो खत
मैंने कभी लिखे ही नहीं
महफूज हैं वो आज भी
मेरे जेहन की अलमारी में

लिपटे हुए हैं
अहसासों की तहों में
खा रहे हैं गोते
स्मृतियों के घाट पर
बूझ रहे पहेली
मेरे दिल ओ दिमाग से

अनछूए हैं
जमाने की नजरों से
अनभिज्ञ हैं रस्मों से
दुनियावी रिवाजों से
जमाने के चलन से

वे खत अपने आप
खुल जाते हैं कभी-कभी
प्रत्येक शब्द
मचा देता है शोर
लगता है चिल्लाने
बुलंद आवाज में

जाग उठता है अचानक
सोया हुआ सागर

-विनोद सिल्ला©

Language: Hindi
1 Like · 188 Views
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