खत्म हो जाये वबा मेरे ख़ुदाविनय
—-ग़ज़ल—–
कर दे अब कुछ मोजिज़ा मेरे ख़ुदा
खत्म हो जाये वबा मेरे ख़ुदा
है लगी इक आग सी चारो तरफ
हो गयी क़ातिल हवा मेरे ख़ुदा
मौत का है बोलबाला शहर में
ज़िन्दगी है लापता मेरे ख़ुदा
आदमी की लाश से अब और तू
क़ब्रगाहें मत सज़ा मेरे ख़ुदा
जो झुकाता था फ़लक वो आदमी
कितना बेबस हो गया मेरे ख़ुदा
हर कोई घबरा के कहता है यही
ज़िन्दगी अब लो बचा मेरे ख़ुदा
बेबसी में आज “प्रीतम” का यहाँ
कौन है तेरे सिवा मेरे ख़ुदा
प्रीतम श्रावस्तवी
श्रावस्ती(उ०प्र०)
9559926244