खत्म हुआ है दिन का फेरा
खत्म हुआ है दिन का फेरा
घिर आया घनघोर अँधेरा
आँखों में घिर आया सावन
ग़म ने जब डाला था डेरा
जिन नागों से दुनिया डरती
नचा रहा है उन्हें सपेरा
भूख मिटाने को जीवन की
ठक- ठक करता रहा ठठेरा
भूल गए कुछ पल खुद को भी
यादों ने था ऐसा घेरा
नींद हमारी उड़ा ले गया
आया ऐसा एक लुटेरा
साथ न जाएगा जब कुछ भी
क्यों करते हो तेरा मेरा
जिसकी जैसी सोच रही थी
उसने वैसा चित्र उकेरा
रात ‘अर्चना’ नहीं टिकेगी
आएगा फिर नया सवेरा
डॉ अर्चना गुप्ता
31.08.2024