खता किस बात की?
आ जाए मुस्कान अगर किसी के चेहरे पर,
दो पल ग़र अपना दिल जलाने से,
फिर कहो! खता किस बात की?
मिलती नहीं खुशियाँ और हर दर्द छिपा बैठे,
मगर गम नहीं गयी यूँ मुस्कुराने से,
फिर अहो! खता किस बात की?
तृष्णा है बरस की क्षितिज़ और तिमिर में,
अन्वेषित-अंतर्मन की अभिशप्त उर-मन,
कृष्ण निशा में आन्दोलित जीवन,
समर्पित हो प्रति क्षण और पराजय हो,
फिर कहो! खता किस बात की?