*खड़ी हूँ अभी उसी की गली*
खड़ी हूँ अभी उसी की गली
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नमी से भरी हवा जो चली।
नयन में मिरे लगी है झड़ी।
पड़ी जब नजर दिखे वो मगर,
मुझे है मिली कली हर खिली।
कठिन है ड़गर नहीं वो अगर,
चलूँ ना कदम वहीं हूँ खड़ी।
दुखी है जिया खफा है हिया,
तमस है भरा बुझी हर लड़ी।
मिले ना शरण हुआ है मरण,
बढ़ी दूरियाँ उम्र भी ढली।
मनसीरत पिया बहुत बेवफा,
खड़ी हूँ अभी उसी की गली।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)