खड़ा बाँस का झुरमुट एक
मेरे घर आंगन के पीछे
खड़ा बाँस का झुरमुट एक।
जिस पर गौरैया ने अपने
आशियाने बनाने अनेक।
सुबह शाम वह कृंदन करती
चहक चहक कर खुशी मनाती
कभी बांस के शीर्ष चढ़ जाती
कभी झुरमुट के अंदर छुपती
अपनी चंचलता के वह सयानी
रूप दिखलाती है अनेक।
मेरे घर आंगन के पीछे।
खड़ा बाँस का झुरमुट एक।
बार-बार वह पानी पीती
पानी पी कर फिर उड़ जाती
इधर उधर से घूम फिर कर
फिर पानी के स्रोत आ जाती
थोड़ा पीती थोड़ा उड़ाती
जल क्रीड़ाएँ करती अनेक।
मेरे घर आंगन के पीछे
खड़ा बाँस का झुरमुट एक।
कभी डोर के ऊपर चढ़कर
खूब मजे से झूला झूलती
फिर वहाँ से उतर धूल में
खूब मजे से धूल उड़ाती
अपने फुर्तीले पंखों से
हवा में चित्र बनाती अनेक।
मेरे घर आंगन के पीछे
खड़ा बाँस का झुरमुट एक।
अपने नीड़ से बाहर निकल वह
जब भोजन की खोज में जाती
उसके बच्चे बाहर निकल कर
राह जोहते कब माँ आती
माँ को भोजन ला बच्चों में
खुशियाँ छा जाती अनेक।
मेरे घर आंगन के पीछे
खड़ा बाँस का झुरमुट एक।
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’
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