खंडित संस्कार
इतने आधुनिक
होते जा रहे है हम
भूल रहे अपने
संस्कार संस्कृति
न कोई तमीज
न ढंग की कमीज
होते जा रहे बच्चे
मनमौजी
न माँ बाप की चिंता
बस पत्नी संग मौजी
होते जा रहे
विद्यार्थी
उद्द॔डता और
अनुशासन हीन
न करते चिंता
भविष्य की
न नौकरी,
न परिवार की
करते है मौज
पिता के पैसों पर
करें स्वागत
आधुनिकता का
सही परिप्रेक्ष्य में
अपनाये
नयी तकनीक
नये विचार
बनें आधुनिक
पर न हो खंडित
हमारे संस्कार और
विचार
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल