खंजर
खंजर
पुराना सा कोई मंजर, सीने में खल गया,
ये उठा दर्द और जी मचल गया।
बेफिक्री के आलम में यादों का खंजर,
चला तो क्या बुरा था, कि तू संभल गया,
अजय अमिताभ सुमन
खंजर
पुराना सा कोई मंजर, सीने में खल गया,
ये उठा दर्द और जी मचल गया।
बेफिक्री के आलम में यादों का खंजर,
चला तो क्या बुरा था, कि तू संभल गया,
अजय अमिताभ सुमन