—कफ़न—
कफ़न, तेरी सादगी न देखी किसी में
कितना शांत, कितना पावन,
कितना बेदाग़, कितना सकून
समेटे हुए,
न कोई हलचल,
न किसी से कुछ कहना
शांत मन से
संग संग चले जाना
खुद की मुस्कान का
किसी को पता नहीं,
सब के आँख में, बस
आंसू छोड़ के चले जाना
बेचैन करता वो लम्हा
किसी से कुछ न तब कहना
ले चला संग मानव को
खामोश सा मंजिल की ओर
कफ़न , सच तेरी शान है निराली
दुनिया में है तू सब से आली
किस को कैसा नसीब होता है
अंत कैसा तक होता है
सब रंग दुनिया के जब तू लेता
है खुद में तब समेट, सच
कफ़न तू है ही सब से अनमोल
जिन्दगी का सकून, तुझ से ही
मिलता है, जब दौड़ दौड़ के
इंसान हो जाता है मजबूर………
अजीत कुमार तलवार
मेरठ