*वक्त की नज़ाकत बदल गई*
वक्त की नज़ाकत बदल गई,
तदवीर इंसा की बदल गई!
ज़माना करवट ले गया,
शहादत खुदा की बदल गई!
वक्त ए दरम्यां हुकुमत है जुल्मी,
इबादत यूँ ही बदल गई!
कद्र न करे कोई अपने परायों की,
जहां की करतूत बदल गई!
ज़ुल्म की बयार चले इस कदर,
जमाने की सूरत बदल गई!
क्या लिखूँ जमाने को मयंक,
दुनिया की तस्वीर बदल गई!
ख़यालों की शमा जली इस कदर,
कवि की तकदीर बदल गई!
रचयिता : के. आर. परमाल ‘मयंक’