Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
25 Aug 2021 · 1 min read

क्षुब्ध मन की पीड़ा

नित दिन मन उद्वेलित हो जाता है, यह सोचकर ।
मानवता का नाश कर, क्या मिला उन्हें खुश होकर ?

नित दिन माली के फूल चुराकर,
बेदर्दी से कुचला जाता है ।
हाय ! यह विडम्बना देखकर,
आँखों से अश्रु बहता है ।

मैं पूछती हूँ उनसे, मन में क्रोध की अग्नि भरकाकर ।
मानवता का नाश कर, क्या मिला उन्हें खुश होकर ?

भान नहीं था तनिक भी उसको,
मर्यादा की सीमाओं का,
वह बच्ची थी, उसे क्या मालूम,
खेल उन कपटियों का ।।

क्या दोष था उस कुसुम का, वह बढ़ रही थी नित खिल-खिलाकर।
मानवता का नाश कर, क्या मिला उन्हें खुश होकर?

जाल बिछाकर षडयंत्रों का,
विवश किया उस बच्ची को,
तन-मन पड़े, अपरिचित वेदनाओं ने,
विक्षुप्त किया उसके अन्तर्मन को ।।

मेरा बैचेन मन, उस कपटी से पूछता चित्कार कर।
मानवता का नाश कर, क्या मिला उन्हें खुश होकर?

आखिर क्यों ………….
अपनी अथाह वेदना को,
उसने ना शब्दों का रूप दिया।।
क्यों ना किया प्रतिकार उसने ?
अपने प्रति उस अन्याय का ।।

मौन थी वह किन्तु ……….
मौन थी वह किन्तु, हृदय पूछ रहा था चित्कार कर,
मानवता का नाश कर, क्या मिला उन्हें खुश होकर?

एक चेतावनी दोस्तों मेरी तरफ से उन दुष्टों को ………………
बंद करो ………..

अब बंद करो ये दुष्टों,
समय आ चुका बदलाव का,
बज चुका है बिगुल अब,
तुम पापियों के नाश का………. (2)

~ज्योति ।

Language: Hindi
5 Likes · 1 Comment · 621 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
প্রশ্ন - অর্ঘ্যদীপ চক্রবর্তী
প্রশ্ন - অর্ঘ্যদীপ চক্রবর্তী
Arghyadeep Chakraborty
" चाँद "
Dr. Kishan tandon kranti
प्रेम पत्र
प्रेम पत्र
Surinder blackpen
What Was in Me?
What Was in Me?
Bindesh kumar jha
"झूठी है मुस्कान"
Pushpraj Anant
😢बस एक सवाल😢
😢बस एक सवाल😢
*प्रणय*
खेल संग सगवारी पिचकारी
खेल संग सगवारी पिचकारी
Ranjeet kumar patre
नए वर्ष की इस पावन बेला में
नए वर्ष की इस पावन बेला में
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
तहजीब राखिए !
तहजीब राखिए !
साहित्य गौरव
मैं बेबस सा एक
मैं बेबस सा एक "परिंदा"
पंकज परिंदा
मृतशेष
मृतशेष
AJAY AMITABH SUMAN
यू तो गुल-ए-गुलशन में सभी,
यू तो गुल-ए-गुलशन में सभी,
TAMANNA BILASPURI
गर तुम मिलने आओ तो तारो की छाँव ले आऊ।
गर तुम मिलने आओ तो तारो की छाँव ले आऊ।
Ashwini sharma
यदि आपका दिमाग़ ख़राब है तो
यदि आपका दिमाग़ ख़राब है तो
Sonam Puneet Dubey
*अब लिखो वह गीतिका जो, प्यार का उपहार हो (हिंदी गजल)*
*अब लिखो वह गीतिका जो, प्यार का उपहार हो (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
माँ दया तेरी जिस पर होती
माँ दया तेरी जिस पर होती
Basant Bhagawan Roy
कितना बदल रहे हैं हम ?
कितना बदल रहे हैं हम ?
Dr fauzia Naseem shad
गांव की गौरी
गांव की गौरी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
3835.💐 *पूर्णिका* 💐
3835.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
કેમેરા
કેમેરા
Otteri Selvakumar
सब्र या धैर्य,
सब्र या धैर्य,
नेताम आर सी
मिलन
मिलन
Bodhisatva kastooriya
किसी को घर, तो किसी को रंग महलों में बुलाती है,
किसी को घर, तो किसी को रंग महलों में बुलाती है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
पतझड़ के मौसम हो तो पेड़ों को संभलना पड़ता है
पतझड़ के मौसम हो तो पेड़ों को संभलना पड़ता है
कवि दीपक बवेजा
हार्पिक से धुला हुआ कंबोड
हार्पिक से धुला हुआ कंबोड
नंदलाल सिंह 'कांतिपति'
मेरे दुःख -
मेरे दुःख -
पूर्वार्थ
वक्त के साथ लड़कों से धीरे धीरे छूटता गया,
वक्त के साथ लड़कों से धीरे धीरे छूटता गया,
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
नजराना
नजराना
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
AE888 - Nhà cái uy tín, nhiều khuyến mãi, tỷ lệ cược hấp dẫn
AE888 - Nhà cái uy tín, nhiều khuyến mãi, tỷ lệ cược hấp dẫn
AE888
ध्यान एकत्र
ध्यान एकत्र
शेखर सिंह
Loading...