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24 Jul 2021 · 1 min read

क्षितिज

क्षितिज….

क्षितिज की न करो बात
था साखी मेरी प्रीति का
ज्यूँ गगन और धरती का

पर जब देनी थी गवाही
खड़ा रहा बस मौन मूक
कह सकता था दो टूक

उठता रहा सन्नाटे में
विरह वेदना का शोर
इस छोर से उस छोर

लौट आयी टकरा कर
मेरी घायल प्रतिध्वनि
उसने चीत्कार न सुनी

था भव्य अनंत असीम
अपरिमित थी काया
पर मेरे काम न आया

व्यथा की अग्नि जली
अंतः जला,जले नयन
लाल कर डाला गगन

तू सदा रहेगा एकाकी
कोई तुझे न ढूँढ पाएगा
मृगतृष्णा सा भरमाएगा

मैं तोड़ कारा उड़ जाऊँगी
क्षितिज पार होगा मिलन
बाट जोहे जहाँ मेरे सजन

रेखांकन।रेखा

Language: Hindi
3 Likes · 6 Comments · 390 Views
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