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24 Feb 2024 · 1 min read

क्षितिज पार है मंजिल

क्षितिज पार है मंजिल
चौराहे पर आज जब
आकर थम सी गई है जिंदगी
फिर हम तलाशते हैं
वो नामुमकिन रास्ते
फिर लौटने को “उस समय” में

गुँजाइश लौटने की तो
गोया बिलकुल ही नहीं है
बस बंद कर अपनी आँखें
“उन्हीं” सुखद यादों को देखते हैं
जीते हैं कुछ पल यूँ ही सुख के

चौराहे के मील का पत्थर
सिर्फ इतना बता रहा है
ये तो बस पड़ाव है
चलना ही नियति है मुसाफिर
क्षितिज के पार है वो मंजिल
सफर जहां का तय है

~ अतुल “कृष्ण”

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