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20 Feb 2022 · 1 min read

क्षरण गीत

गीत

तन से अपने वसन घटाकर
जयती जयती बोल रहे हैं
गिरने को आतुर है गंगा
पग धरती के डोल रहे हैं।

ह्रास सभी पनघट पर देखा
गागर ऊंची तन पर छींटा
अलबेली यह मस्त सुहानी
सब आँखों में घोल रहे हैं।

माना जग में बहुत कुहासा
चढ़ती धूप, मुसाफिर प्यासा
रोटी की है जुगत निराली
किस्मत के ही झोल रहे हैं।

देखा यौवन, और बुढ़ापा
ज्यूँ खाते सब दही-बताशा
शुभ लाभ की देखो घड़ियाँ
सुइयों से ही तोल रहे हैं।।

टूटे साज़, थिरकती उंगली
सुन ले, सुन ले, तू ओ पगली
अब बातों में प्रीत कहाँ रे
हाट-हाट सब मोल रहे हैं।।

सूर्यकान्त द्विवेदी

Language: Hindi
Tag: गीत
221 Views
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