क्षमा
क्षमा का घर है
पौरुष, विशाल हृदय,
शील और मनुजता ।
क्षुद्र हृदय, कापुरुष,
अभिमानी हृदय में
ये झांकती भी नहीं ।
समदर्शी संतो, विनम्र
धर्मशील मनुजों की
क्षमा चेरी भी बन जाती है
जिसकी सेवा से वे
नित्य प्रखर होते जाते हैं।
किन्तु कभी-कभी
दण्ड अपरिहार्य हो जाता
तब भी दोषी के प्रति
अपने मन में कोई गाँठ न बांधना
यह गाँठ तुम्हें स्वयं में जकड़ लेगी
इसीलिए
मन से उसे अवश्य क्षमा कर
स्वयं को मुक्त कर लेना।