क्षमा
क्षमा वह गुण है जो साधारण मनुष्य को उसके समकक्ष अन्य से श्रेष्ठ बनाता है।
गलती करना स्वाभाविकता है, अनजाने में की गई गलती क्षमा योग्य है। परंतु सोची समझी योजनाबद्ध तरीके से किसी व्यक्ति विशेष को हानि पहुँचाने के लिए की गई गलती अपराध की श्रेणी मे आती है, जो अक्षम्य है।
क्षमा के लिए पात्र एवं कुपात्र का चयन करना अतिआवश्यक है। जो क्षमा के पात्र हैं उनके द्वारा की गई अनायास हो जानी वाली गलती को भविष्य में न करने की चेतावनी देकर को सुधार की दृष्टी से क्षमा किया जाना चाहिए , परंतु जानबूझकर गलती करने वाले एवं नकारात्मक प्रकृति से प्रभावित गलती करने वालों को क्षमा नहीं किया जा सकता है।
एक बार क्षमा प्राप्त करने के पश्चात चेतावनी पाकर उस गलती को न सुधार कर फिर से गलती को दोहराना ,चेतावनी की अवहेलना है, जो कि अक्षम्य है।
क्षमा प्रदान करना एक श्रेष्ठ गुण है। कहा भी गया है की “क्षमा वीरस्य भूषणम “।
परंतु क्षमा प्रदान करने के दो पक्ष है।
पात्र को क्षमा करने से उसके द्वारा की गई गलती में सुथार का दृष्टिकोण निहित होता है। एवं क्षमा करने वाले के वचन को बल मिलता है , एवं उसे अन्य सामान्य श्रेणी के मनुष्यों से उच्च पद पर आसीन करता है।
कुपात्र को क्षमा करने से गलती करने वाले को क्षमा करने वाले का यह श्रेष्ठ गुण उसकी दुर्बलता प्रतीत होता हे , और वह निर्भीकता से पुनः अपराध करने के लिए प्रवृत्त होता है।
अतः किसी व्यक्ति द्वारा की गई गलतियों का आकलन क्षमा करने से पूर्व करना आवश्यक है।
अन्यथा क्षमा करने वाले को दूसरों द्वारा किये गए अपराध को क्षमा करना ,
उसके लिए अभिशाप सिद्ध हो सकता है।