क्षमा के फूल
हो जाये अगर भूल तो मुझे माफ़ करना
अपने से जुदा मुझे कभी तुम न करना
कितने जतन से साथ मैं निभाऊँ
हर पल दुआओ से दामन सजाऊँ
खुशियों के महल में हो क्षमा का बसेरा
इक दूजे के खातिर चाहतों का डेरा
ख़फ़ा हो जाओ मना लूँगी तुमको
जो भी गिला हो मिटाऊंगी उसको
क्षमा के दो फूल को मन में सजाओं
प्रेम की धारा से सब भूल को भुलाओ
बागवान बिन कैसे फूल मुस्कुराये
खिलने से पहले मुरझा वो जाये
अपने आशियाने को प्यार की बहार से
जन्नत का मज़मा दिलों में सजाइये ।
इक दूजे की भूल को प्यार से मिटाइये
विनीता अनिल कुमार
पैगवार