क्षमा अपनापन करुणा।।
1.करुणा का यह देश है
बिछा क्रूरता जाल।
गौतम को ललकारते
फिरते अंगुलिमाल।।
फिरते अंगुलिमाल
क्षमा समता है खोई।
सभी घूमते मस्त
उतारी सिर से लोई।।
जीना है यदि आज,
सभी से डर कर रहना।
मन से मीलों दूर,
क्षमा अपनापन करुणा।।
1.करुणा का यह देश है
बिछा क्रूरता जाल।
गौतम को ललकारते
फिरते अंगुलिमाल।।
फिरते अंगुलिमाल
क्षमा समता है खोई।
सभी घूमते मस्त
उतारी सिर से लोई।।
जीना है यदि आज,
सभी से डर कर रहना।
मन से मीलों दूर,
क्षमा अपनापन करुणा।।